समुद्र हमसे नाराज़ है
समुद्र के आंचल में बसा गाँव था, जहाँ लहरों की लय पर नाचता समुदाय रहता था। उनमें से एक थे लखन, मछुआरे की तीखी नज़र और गहरे समुद्र से अनोखी मित्रता रखने वाला युवक। गाँव वाले लखन को “समुद्र का पुत्र” बुलाते थे, क्योंकि वह लहरों से बातें करता और उनके रहस्य समझता था।
एक दिन, समुद्र उग्र हुआ। तूफान ने जाल फाड़ डाले, नावें चकनाचूर हो गईं। गाँव वाले भयभीत थे, पर लखन शांत रहा। उसने सूर्योदय से पहले ही समुद्र तट पर प्रार्थना की, लहरों को शांत करने और उन्हें सही रास्ते दिखाने के लिए। सूरज निकला तो समुद्र अचानक शांत हो गया, मानो लखन की प्रार्थना सुन ली हो।
गाँव वाले चकित थे। लखन ने बताया, “समुद्र हमसे नाराज़ है। हम लालच में मछलियों को लूट रहे हैं, उनका घर उजाड़ रहे हैं। समुद्र हमें माफ कर सकता है, लेकिन बदले में हमें बदलना होगा।”
लखन ने गाँव वालों को समझाया कि कैसे कम मछली पकड़कर, छोटे बच्चों को पकड़ने से रोकर और समुद्र को स्वच्छ रखकर वे उसका सम्मान कर सकते हैं। शुरू में कुछ हिचकिचाहट थी, पर लखन की दृढ़ता और समुद्र की शक्ति से प्रेरित होकर सब मान गए।
धीरे-धीरे बदलाव दिखने लगा। समुद्र शांत रहने लगा, मछलियाँ लौट आईं और गाँव समृद्ध हुआ। लखन ने “समुद्र मित्र” नामक एक अभियान शुरू किया, जो पूरे तटीय इलाके में फैल गया। लोग मछली पालन के नए तरीके सीखने लगे, समुद्र किनारों की सफाई करने लगे।
एक दिन, एक बड़ा जहाज समुद्र में फँस गया। तूफान आने वाला था। गाँव के सभी मछुआरे अपनी छोटी नावों में बैठकर जहाज को बचाने निकल पड़े। उनका नेता कौन था? “समुद्र का पुत्र”, लखन।
जो गाँव वाले कभी लखन को अजीब मानते थे, अब उसे अपना हीरो मानते थे। लखन ने साबित किया कि प्रकृति से मित्रता ही असली समृद्धि लाती है। उसकी कहानी पूरे देश में फैल गई, एक प्रेरणा बन गई कि कैसे इंसान और प्रकृति साथ मिलकर खुशहाल जीवन जी सकते हैं।
तो दोस्तों, यह थी लखन, समुद्र के पुत्र की कहानी। हमें भी लखन से सीखना चाहिए कि प्रकृति का सम्मान करें, उसका दोस्त बनें, तभी वह भी हमारा दोस्त बनेगी और हमें सुख-समृद्धि देगी।
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